भगवान शिव का सबसे पहला शिवलिंग का रहस्य

आज हम भगवान शिव के शिवलिंग के रहस्यो के बारें में जानेंगे कि भगवान शिव का सबसे पहला शिवलिंग का रहस्य क्या है,शिवलिंग का हिन्दी में अर्थ जानेंगे, शिवलिंग की पूजा क्यों होती है और शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? ऐसे ही महत्वपूर्ण विषयों के बारे में चर्चा करेंगे।

विश्व का पहला शिवलिंग – भगवान शंकर को इस समस्त विश्व का पालनकर्ता माना गया है। और तो और इतना ही नहीं बल्कि उन्हें सभी देवों का भी देव महादेव कहा जाता है। संसार भर मे भगवान श्री महादेव के भक्तो की संख्या सबसे ज्य़ादा देखने को मिल जाती है। हमारे इस हिन्दू सनातन धर्म मे पहले से ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग की पूजा की जाती है।

भारत देश में ही नहीं बल्कि पूरे संसार भर में सबसे ज्य़ादा मंदिर भगवान शंकर के ही देखने को मिलते हैं। बहुत ज्यादा सुप्रसिद्ध मंदिरो के अलावा यहाँ हर दूसरी गली और कस्बो मे भगवान शिव का मंदिर देखा जा सकता है। लेकिन कब से शिवलिंग पूजन की शुरुआत हुई हैं। सबसे पहले कब और किस महत्व से की गई शिवलिंग की पूजा, आइए इस लेख में जानते हैं।

विश्व का सबसे पहला शिवलिंग कहाँ हैं?

अगर शिव महापुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देखा जाए तो दारुकावन के खरगोन जिले से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर मंडलेश्वर में भगवान शंकर का सबसे पहला शिवलिंग का स्थापना हुआ था। यह प्रसिद्ध मंदिर आज भी गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

इस शिवलिंग को किसने स्थापित किया ?

धार्मिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि, हजारों वर्ष पहले भगवान शंकर की धर्मपत्नी माँ पार्वती ने इस शिवलिंग की स्थापना कर शिवलिंग की पूजा की थी। माँ पार्वती के इस पूजा और तपस्या को देख भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए थे।

गुप्तेश्वर मंदिर का महत्व क्या हैं?

इस प्रसिद्ध मंदिर के मठाधीशों द्वारा ऐसा बताया जाता है कि यहाँ आधी रात के समय में मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई देती है और मंदिर के सामने नंदी भगवान की बहुत बड़ी मूर्ति है। और इस मूर्ति की यह मान्यता है कि इनके कान में आप अपनी कोई भी मनोकामना कहने पर वह अवश्य पूर्ण होती है।

भगवान शिव का सबसे पहला शिवलिंग का रहस्य

जाने शिवलिंग का हिन्दी में अर्थ

अक्सर हम देखते या फिर सुनते हैं कि शिवलिंग का अर्थ ज्यादातर लिंग को बताते हैं, जिन्हे यह बिल्कुल भी ज्ञान नही होता कि आखिर शिवलिंग क्या हैं। और जो यह ज्ञान देते हैं उनमें से किसी को संस्कृत का भी ज्ञान नहीं होता है। और ऐसे में वह शिवलिंग की गलत व्याख्या कर देते हैं जो कि सर्वथा अनुचित हैं, तो आइए शिवलिंग का असली अर्थ हिन्दी में जानें और इस इस भ्रम से बचें।

शिव महापुराण और लिंग महापुराण में लिंग का वास्तिविक अर्थ संस्कृत में चिन्ह, या फिर प्रतीक होता है। अर्थात् शिवलिंग का अर्थ हुआ भगवान शिव का प्रतीक।

और ठीक अगर हम इसी प्रकार देखें तो पुरुष लिंग का मतलब हुआ पुरुष का प्रतीक, और इसी प्रकार स्त्रीलिंग का मतलब हुआ स्त्री का प्रतीक, और नपुंसक लिंग का मतलब हुआ नपुंसक का प्रतीक जबकि यह संभव भी हैं। और यह एक पूर्णतः व्याख्या पूर्ण तर्क हो सकता हैं।

पुराणों के अनुसार शिव लिंग के निचले भाग में ब्रह्मा जी और मध्यम भाग में भगवान विष्णु जी और शिवलिंग के शीर्ष भाग में भगवान महादेव जी वास होता हैं। और शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय जहाँ से जल का प्रवाह शुरू होता हैं वहाँ भगवान शिव की पुत्री अशोक सुन्दरी का वास होता हैं। शिवलिंग के निचले भाग में जहाँ से शिवलिंग की शुरुआत होती हैं वहाँ समस्त ब्रम्हाण्ड सहित सभी नवग्रह समाहित होते हैं, माना जाता हैं कि केवल शिवलिंग के पूजन से समस्त देवी देवताओं का पूजा एक साथ हो जाता हैं।

शिवलिंग को एक दिव्य और अलौकिक अखण्ड ज्योति के रूप में जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिवलिंग का निर्माण मन, चित्त, जीव, बुद्धि, आसमान, वायु, आग, पानी और पृथ्वी जैसे तत्व शिवलिंग में निरन्तर समाहित रहते है। शिवलिंग को इस पूरे अखण्ड ब्रह्मांड का प्रतीक स्वरूप माना जाता है। और यह भी कहा जाता है कि इस संसार में शिवलिंग की उत्पत्ति सर्वप्रथम सबसे पहले हुई थी। और यदि भक्त सच्चे भक्ति भाव से शिवलिंग की पूजा करें तो महादेव भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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शिवलिंग की पूजा क्यों होती है

शिवलिंग भगवान सदाशिव का प्रतीक चिन्ह के रूप में विश्व विख्यात है। और उनके निश्छल ज्ञान और अनंत तेज का पुंज यह प्रतिनिधित्व करता है। ‘शिव’ का अर्थ होता है ‘कल्याणकारी’। ‘लिंग’ का अर्थ होता है ‘सृजन’। सर्जनहार के इस रूप में शिव के चिह्न् के रूप में लिंग की सदैव पूजा-अर्चना की जाती है।

महा प्रलय के समय में तेजरूपी अग्नि में सब भस्म हो कर पुनः शिवलिंग में समा जाता है, और सृष्टि के पूर्व में इस लिंग से ही सब प्रकट होता है। लिंग के मूल भाग में ब्रह्मा, मध्यम भाग में विष्णु और ऊपर में महादेव स्थित हैं। वेदी स्वरूप में महादेवी की पूजा होती है। केवल शिव लिंग के पूजा से समस्त देवी और देवता की पूजा हो जाती है।

शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई

भगवान शंकर को और भी कई अन्य हजारों नामों के साथ जाना जाता है। और यह मान्यता है कि जब इस ब्रम्हाण्ड में कुछ भी नहीं था, तब भी भगवान शिव शंकर, शिवलिंग के रूप में विद्यमान थे। तब हमारे मन में एक प्रश्न उठता है कि भगवान शिव के स्वरूप इस शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? और अगर वहीं, पौराणिक कथाओं की बात करे तो शिवलिंग की उत्पत्ति की बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन यदि भागवत पुराण की चर्चा करें, तो इस कथा में शिवलिंग की उत्पत्ति से जुड़ी एक अत्यन्त रोचक कहानी हमें देखने को मिलती है। और इसका प्रमाण हमें शिव महापुराण में भी देखने को मिलता हैं। तो आइए जानते हैं कि शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई ?

आदि काल में ब्रह्मा जी और विष्णु जी में अकस्मात यह विवाद उत्पन्न हो गया कि हम दोनों में कौन श्रेष्ठ है?

और अब ब्रह्मा जी और विष्णु जा का विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों में युद्ध होने लगा। वे दोनो एक-दूसरे पर अस्त्र-शस्त्रों तथा दिव्यास्त्रों के वार करने लगे। और अब सभी देवता गण दोनों देवताओं के युद्ध को देखकर अत्यन्त भयभीत हो गए। समस्त देवगण मिलकर देवादि देव भगवान श्री महादेव जी के पास पहुंचे और सभी देवताओं ने मिलकर शिव जी से यह कहा कि हे प्रभू आप इन दोनों के युद्ध को जल्दी रोकें, अन्यथा समस्त सृष्टि के लिए एक बहुत बड़ा संकट उत्पन्न हो जाएगा।

भगवान शिव ने सभी देवताओं की सलाह को मानकर, भगवान शिव जी एक अग्नि स्तंभ के स्वरूप में ब्रह्मा और विष्णु के बीच प्रकट हुए।

इस अग्नि स्तंभ को देखकर ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने यह तय किया कि जो भी इस स्तंभ का अंतिम छोर ढूंढ लेगा, वही उन दोनो में श्रेष्ठ होगा। और अब ब्रह्मा जी स्तंभ के ऊपरी भाग में चले गए और विष्णु जी नीचे भाग में अंतिम छोर का पता करने गए। और यह दोनों ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहस्त्रों वर्षो तक इस अग्नि स्तम्भ के छोर को खोजते रहें।

जब भगवान विष्णु जी को इस अग्नि स्तंभ का अंतिम छोर नहीं मिला तो वे वापस लौट आए, लेकिन अब दूसरी तरफ ब्रह्मा जी ने अपने आप को श्रेष्ठ बनाने के लिए एक अत्यन्त गूढ़ योजना बनाई।

ब्रह्मा जी ने इसी स्तंभ में केतकी के फूल को और एक गाय को देखा। और केतकी के फूल से ब्रह्मा जी ने कहा अगर तू मेरे साथ बाहर चल कर यह बोल देगा कि मैंने इस अग्नि स्तंभ का अंतिम छोर खोज लिया है तो मैं तुझे सभी फूलों का स्वामी घोषित कर दूंगा। और गाय को कहा कि वह अगर बाहर चलकर यह कह दिया कि ब्रह्मा जी ने स्तम्भ के अंतिम छोर को ढूंढ लिया हैं तो मैं तुझे प्रथम पूज्य का अधिकार दूंगा।

केतकी के फूल और गाय ने ब्रह्मा जी की बात मान ली। और उन दोनो ने उस अग्नि स्तंभ से बाहर निकलकर यह झूठ बोल दिया कि ब्रह्मा जी ने इस अग्नि स्तंभ का अंतिम छोर ढूंढ लिया है।

जैसे ही केतकी के फूल और गाय ने यह झूठ बोला कि, वहां भगवान शिव जी प्रकट हो गए। तब शिव जी ने ब्रह्मा जी के झूठ को भांप लिया। अब शिव जी अत्यन्त क्रोधित हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी को यह शाप दिया कि आपने असत्य कहा है, इसलिए अब से आपकी पूजा कहीं भी नहीं होगी।

अब ब्रह्मा जी के बाद शिव जी ने केतकी के फूल से कहा कि तूने इस झूठ में ब्रह्मा जी का साथ दिया हैं और झूठ बोला है,इसलिए अब से तू मेरी पूजा में वर्जित रहेगा और जो भी केतकी के फूल मुझ पर चढ़ाएगा उसे गौ हत्या के बराबर पाप लगेगा।

और अब शिव जी ने गाय से कहा कि तूने भी इस झूठ में ब्रह्मा जी का साथ दिया हैं इसलिए मैं तुझे यह श्राप देता हूँ कि तेरे समस्त शरीर की पूजा होगी लेकिन तेरे मुँह की पूजा नही होगी क्योंकि तूने इसी मुख से असत्य कहा हैं।

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औरतों को शिवलिंग छूना चाहिए या नहीं

महिलाओं को विशेषकर शिवलिंग की पूजा करते समय यह कुछ गलतियां नहीं करनी चाहिए, अन्यथा ऐसा करने से पूजा सफल नहीं मानी जाती है। और जिस कारणवश व्यक्ति को दुष्परिणाम तक भोगना पड़ सकता है। जिनका विवाह न हुआ हों उन महिलाओं को शिवलिंग छूने की मनाही है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव सबसे ज्यादा पवित्र और पावन हैं, और सदैव समाधि में लीन रहते हैं। भगवान शिवशंकर के इस समाधि के दौरान इस महत्वपूर्ण बात का खास ध्यान रखा जाता हैं कि कोई देवी या अप्सरा भगवान शिव के इस ध्यान में विघ्न न डाल सके। अन्ततः इसलिए कुंवारी लड़कियों को शिवलिंग को छूने से मना किया जाता है। भगवान शिव की तपस्या में विघ्न डालना सर्वथा अनुचित माना जाता रहा है, इसलिए शास्त्रों और पुराणों में अविवाहित महिलाओं को शिवलिंग को स्पर्श करने से मना किया गया है।

भगवान शिव का सबसे पहला शिवलिंग का रहस्य

महिलाओं को शिवलिंग की पूजा कैसे करनी चाहिए?

अगर देखा जाऐ तो शास्त्रों और पुराणोंके अनुसार, शिवलिंग शक्ति का प्रतीक है और केवल शादीशुदा पति-पत्नी या पुरुष ही शिवलिंग को छू सकते है। इसलिए अगर आप शिवलिंग की पूजा करने जा रहे हैं तो यह ध्यान अवश्य रखें कि केवल पुरुष को ही शिवलिंग को छूना है और यदि महिला पवित्र हैं तो वह भी शिव लिंग को स्पर्श कर सकती हैं। अगर यदि कोई भी महिला शिवलिंग को तिलक लगाने या फिर पूजा करने हेतु छूना चाहती हैं तो इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि पहले आप शिवलिंग से बहते पवित्र जल को स्पर्श कर उस जल को प्रणाम कर माथे से लगाए उसके उपरान्त ही शिवलिंग को स्पर्श करें। और इस प्रकार हमने इस लेख में जाना कि महिलाओं को शिवलिंग की पूजा कैसे करनी चाहिए?

क्या घर में शिवलिंग रखनी चाहिए ?

अगर यदि आप शिवलिंग की पूजा नही कर सकते हैं तो ऐसे स्तिथी में पवित्र शिवलिंग को घर में नहीं रखना चाहिए, ऐसा करने से दोष लगता हैं।

आप एक बात का ध्यान अवश्य रखें कि किसी भी घर में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कभी भी नहीं करवानी चाहिए। तो इस स्तिथी में शिवलिंग को साधारण रूप से रखकर विधि विधान से पूजा करनी चाहिये। और उनका रोजाना अभिषेक करना चाहिए और सच्ची श्रद्धा भाव से पूजन करना चाहिए, ऐसा करने से भी आपको पूर्ण फल की प्राप्ति हो सकती हैं।

यदि घर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो नर्मदा नदी से उत्पन्न पत्थर से बना शिवलिंग जिसे नर्मदेश्वर शिवलिंग भी कहा जाता हैं उन्हे रखना चाहिए। और यह आम जीवन में अत्यन्त शुभकारी और लाभकारी सिद्ध होता है।

और यदि घर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो, छोटा सा शिवलिंग जो हाथ के अंगूठे के बराबर का हो या फिर छोटा हो, एसा शिवलिंग घर में रखना लाभकारी होता हैं। और यदि शिवलिंग हाथ के अंगूठे से बड़ा हैं तो उन बड़े शिवलिंग को किसी भी मंदिरों में रखा जा सकता हैं। और ऐसे में यह शिवलिंग अत्याधिक शुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं.

कभी भी शिवलिंग की पूजा नित्य प्रातः और संध्याकाल में अवश्य करनी चाहिए। और यदि ऐसा कर पाना सम्भव ना हो तो इस स्तिथी में शिवलिंग को घर में नही रखना चाहिए।

और शिवपुराण में भी वर्णित है कि कभी भी और किसी भी स्तिथी में घर में एक से अधिक शिवलिंग नहीं रखना चाहिए।

और अगर देखे तो वास्तु शास्त्र के अनुसार सदैव शिवलिंग से हर समय ऊर्जा का संचार होता रहता है, इसलिए शिवलिंग पर हमें सदैव जलधारा रखनी चाहिए जो शिवलिंग से उत्पन्न ऊर्जा को शांत बनाए रखता है। और यदि आप दिन में एक बार या फिर हफ्ते भर में एक बार शिवलिंग का अभिषेक करते हैं तो यह पर्याप्त नही होता हैं। ऐसा करने पर घर में अशांति का वास होता है।

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शिव लिंग से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण – FAQ

शिवलिंग धरती पर कैसे आया?

ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी ने मिलकर इस धरती पर भगवान शिव की तपस्या की थी तब भगवान शिव प्रकट हुए और उन दोनो देव के आग्रह पर वहाँ शिवलिंग के रूप स्थापित हुए।

क्या शिवलिंग कोई प्राइवेट पार्ट हैं?

नही, ऐसा सोचना भी नही चाहिए जैसा कि हमने आपको बताया हैं कि लिंग संस्कृत भाषा का शब्द हैं और इस का अर्थ चिन्ह या प्रतीक होता हैं, ऐसे में शिवलिंग का अर्थ हुआ भगवान शिव का प्रतीक या फिर चिन्ह भी कह सकते हैं।

शास्त्रो के अनुसार शिवलिंग क्या होता हैं?

अगर शास्त्रो की माने तो शिवलिंग एक परम प्रकाशित उर्जा हैं जिसमें यह समस्त अखिल ब्रम्हाण्ड की उर्जा समाहित हैं। और शिवलिंग सदैव परम पवित्र होता हैं परम ज्योतिमान होता हैं और यह शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक हैं।

शिवलिंग का रहस्य क्या होता है?

शिवलिंग इस पूरे परम ब्रम्हाण्ड को संचालित करता हैं ऐसी कोई भी शक्ति नही हैं जो शिवलिंग मे ना हो बल्कि संसार की समस्त उर्जा इस शिवलिंग से उत्पन्न हैं। शिवलिंग स्वयंभू भगवान शिव का प्रतीक हैं जो निराकार और साकार दोनो रूप में हैं।

शिवलिंग काला ही क्यो होता हैं?

शिवलिंग का कोई भी रंग नही होता हैं बल्कि स्वयं सभी रंग और उर्जा स्वयं शिवलिंग से प्रकाशित होती हैं। उदाहरण के लिए बाबा अमरनाथ का शिवलिंग सदैव बर्फ का होता हैं और भी इस प्रकार के कई उदाहरण हैं शिवलिंग में रंग का कोई महत्व नहीं होता महत्व होता हैं तो केवल भक्ति का।

इस पूरे संसार में कुल कितने ज्योर्तिलिंग हैं?

इस संसार भर में कुल 12 ज्योर्तिलिंग हैं।

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