नमस्कार मित्रों, आज के इस लेख में हम आपका हार्दिक अभिनंदन करते हैं, आज के इस लेख मे हम बात करेंगे कि Shiv sahastra naam stotram in Hindi, क्या हैं, और इसका पाठ क्यो करना चाहिए।आइए इस लेख की ओर आगे बढ़ते हैं।
Shiv sahastra naam stotram in Hindi ke fayde
ग्रह दोष से मुक्ति हेतु
शिव पुराण के अनुसार, Shiv sahastra naam stotram in Hindi का मन में जाप करते हुए शिवलिंग पर विल्व पत्र अर्पित से समस्त जीवन के ग्रह दोष दूर होते हैं और हम ग्रह दोष से मुक्त हो जाते हैं।
तंत्र-मंत्र क्रिया से छुटकारा
जब भी हमारे उपर किसी प्रकार की तंत्र मंत्र की क्रिया की जाती हैं और या फिर जब हम मंत्र उच्चारण करते समय जो हमसे गलती हो जाती हैं जिससे हमें दोष लगता हैं,यह तंत्र-मंत्र से उत्पन्न होने वाले दोषों से हमारी रक्षा करता है।
मानसिक शांति हेतु
इस शिव शहस्त्र नाम स्त्रोत का जाप करने से नियमि हमारा मन शांत होता है और मानशिक शांति प्राप्त होती है।
सकारात्मक ऊर्जा की उन्नति
शिव सहस्त्रनाम का निरन्तर जाप करने से सकारात्मक ऊर्जा का हमारे जीवन मे प्रवेश होता हैं। जो हमारे जीवन को नई उचाइयों तक पहुंचाता हैं।
घर में सुख और समृद्धि
इस पवित्र शिव सहस्त्र नाम का पाठ करने से हमारे घर में सुख और समृद्धि का निरन्तर वास हो जाता हैं।
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Shiv sahastra naam stotram in Hindi ke Upay
वैवाहिक सुख में वृद्धि
यदि प्रत्येक सोमवार की शाम के समय शिव सहस्त्रनाम का जाप किया जाए तब वैवाहिक जीवन सुखमय और प्रेम मय होता है।
भाग्योदय में वृद्धि
यदि प्रत्येक शिवरात्रि या फिर प्रदोष व्रत पर शिव सहस्त्रनाम का जाप पूर्ण करने के पश्चात् शिवलिंग पर श्वेत कनेर के फूल अर्पण करने से भाग्य में वृद्धि होती है।
रोग से मुक्ति
प्रत्येक दिन और विशेष रूप से सोमवार को शिव सहस्त्रनाम का जाप करते हुए शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करने से रोगों से मुक्ति मिलती है।
मानसिक शांति में वृद्धि
यदि शिव सहस्त्रनाम का जाप करते हुए शिवलिंग पर सफ़ेद चंदन चढ़ाए तब एसा करने से मानसिक शांति की प्राप्ति होती हैं।
विद्यार्थियों के लिए उपयोगी
यदि विद्यार्थी परीक्षा में सफलता के लिए सोमवार या किसी भी दिन को शिव सहस्त्रनाम का जाप करते हुए शिवलिंग पर बताशे चढ़ाए ऐसा करने से निश्चित ही आप को परीक्षा में सफलता मिलेगी।
अकाल मृत्यु से बचने के लिए भी शिव सहस्त्र नाम जाप का उपयोग किया जाता हैं और यह पूर्णतः सफल भी होता हैं।
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Shiv sahastra naam stotram in Hindi Ka jaap kaise kare
सोमवार या प्रदोष काल और किसी भी शिवरात्रि को आप सच्चे मन से भगवान शिव को याद करते हुए शिव सहस्त्र नाम का जाप कर सकते हैं और आपको सफलता की प्राप्ति भी हो सकती हैं।
और इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आप शुद्ध हो कर और भगवान शिव का अभिषेक कर और उनके सम्मुख दीपक जलाकर इस जाप का शुभारंभ करे।
Shiv sahastra naam stotram in Hindi की उत्पत्ति
प्राचीन समय की बात हैं, जब असुर बहुत बलशाली होकर मनुष्यों को कष्ट देने लगे और धर्म का नाश करने लगे | उन सभी महाबली और महा पराकमी असुरों से भयभीत हो सभी देवताओं ने देवों के रक्षक भगवान श्री नारायण से अपनी संपूर्ण
व्यथा बताई। तब भगवान विष्णु जी ने कैलाश धाम पर जाकर भगवान् शंकर की विधिपूर्वक पूजा करने लगे । भगवान विष्णु ने सहस्त्र नामों से भगवान शंकर की स्तुति की, और स्तुति करते समय प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल भगवान शंकर को चढ़ाते थे | तब भगवान् शिव जी ने श्री नारायण जी के भक्तिभाव की परीक्षा के लिये उनके लाये हुए एक हजार कमल के फूलों से एक को छिपा दिया | भगवान शंकर की इस माया का श्री हरि को बिल्कुल भी पता नहीं लगा। जब भगवान विष्णु को यह पता लगा तो उन्होंने उस एक कमल के फूल की खोज शुरू कर दी।
जब भगवान श्री हरि ने इस पूरे ब्रम्हाण्ड में उस कमल के फूल को खोजा और वह नहीं मिला तब वह अपना कमल के समान अपने नेत्र निकालकर भगवान शिव को अर्पण कर दिए। यह देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट हुए और भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया।
भगवान विष्णु द्वारा की गई Shiv sahastra naam stotram in Hindi इस प्रकार हैं।
Shiv sahastra naam stotram in Hindi
ॐ स्थिरः स्थाणुः प्रभुर्भीमः प्रवरो वरदो वरः ।
सर्वात्मा सर्वविख्यातः सर्वः सर्वकरो भव: ॥ 1 ॥
अर्थ – ॐ, जो स्थिर और अचल है, जो सभी स्थानों को प्रभुत्व प्रदान करता है, वह भयंकर है, वह प्रमुख है, वह वरदान देने वाला है, वह सबका संबोधक और प्रमाणित है, वह सबका कर्ता है, उसे अपने हैं।
जटी चर्मी शिखण्डी च सर्वाङ्गः सर्वभावनः ।
हरश्च हरिणाक्षश्च सर्वभूतहरः प्रभुः ॥ 2 ॥
अर्थ- जटे बालों वाले, त्रिशूल धारी, सब शरीरों के आचरण को समझने वाले, सभी के मन के भावों को जानने वाले। हर, हरिणाक्ष, जो समस्त भूतों का नाश करने वाले, सर्वशक्तिमान प्रभु हैं।
प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च नियतः शाश्वतो ध्रुवः ।
श्मशानवासी भगवान् खचरो गोचरोऽर्दनः ॥ 3 ॥
अर्थ- वह प्रवृत्ति और निवृत्ति है, अनन्त, निश्चल, श्मशान में वास करने वाला, जीवों के लिए आश्रय और भोजन होने वाला, जिसका विख्यात नाम खचर है, जो गोचर में आता है और बुराई को नष्ट करता है।
अभिवाद्यो महाकर्मा तपस्वी भूतभावनः ।
उन्मत्तवेषप्रच्छन्नः सर्वलोकप्रजापतिः ॥ 4 ॥
अर्थ- वह आदरणीय है, महाकर्मा है, तपस्वी है, भूतों की भावना को धारण करने वाला है, मस्तिष्क से छिपे हुए है, सब लोकों के प्रजापति है।
महारूपो महाकायो वृषरूपो महायशाः ।
महात्मा सर्वभूतात्मा विश्वरूपो महाहनुः ॥ 5 ॥
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अर्थ – वह महान रूपधारी है, महाकाय है, वृषरूपी है, महायशस्वी है, महात्मा है, सब जीवों का आत्मा है, विश्वरूपी है और महान हनुमान है।
लोकपालोऽन्तर्हितात्मा प्रसादो हयगर्दभिः ।
पवित्रं च महांश्चैव नियमो नियमाश्रितः ॥ 6 ॥
अर्थ – वह सब लोकों का पालक है, अंतर्हित आत्मा है, हयगर्दभि द्वारा आनंदित होता है, पवित्र है और महान भक्तों के आश्रय में है।
सर्वकर्मा स्वयम्भूत आदिरादिकरो निधिः ।
सहस्राक्षो विशालाक्षः सोमो नक्षत्रसाधकः ॥ 7 ॥
अर्थ – वह सर्व कर्म का स्वयंभूत है, सब कारणों का कारण है, अनंत आँखों वाला है, विशालाक्ष है, सोम है और नक्षत्रों के साधक है।
चन्द्रः सूर्यः शनिः केतुर्ग्रहो ग्रहपतिर्वरः ।
अत्रिरत्र्यानमस्कर्ता मृगबाणार्पणोऽनघः ॥ 8 ॥
अर्थ – चंद्रमा, सूर्य, शनि, केतु, ग्रह और ग्रहपति, अत्रि और अत्रि के आनंद का कर्ता, मृगबाण को समर्पित हुआ, पापरहित है।
महातपा घोरतपा अदीनो दीनसाधकः ।
संवत्सरकरो मन्त्रः प्रमाणं परमं तपः ॥ 9 ॥
अर्थ – वह महान तपस्वी है, भयानक तपस्वी है, निर्जीवों के साधक है, संवत्सर का कर्ता है, परम तप है।
योगी योज्यो महाबीजो महारेता महाबलः ।
सुवर्णरेताः सर्वज्ञः सुबीजो बीजवाहनः ॥ 10 ॥
अर्थ – योगी है, योग के योज्य है, महान बीजवान है, महान शुक्रतेजस्वी है, महाबलशाली है, सोने के बीजों वाले है, सर्वज्ञ है, सुबीजों का पालक है।
दशबाहुस्त्वनिमिषो नीलकण्ठ उमापतिः ।
विश्वरूपः स्वयंश्रेष्ठो बलवीरोऽबलो गणः ॥ 11 ॥
अर्थ – वह दस हाथों वाला है, एक निमिष में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का अधिपति है, विश्वरूपी है, स्वयंश्रेष्ठ है, बलवान है, तोड़ने वाला है।
गणकर्ता गणपतिर्दिग्वासाः काम एव च ।
मन्त्रवित्परमोमन्त्रः सर्वभावकरो हरः ॥ 12 ॥
अर्थ – गणकर्ता है, गणपति है, दिग्वासा है, काम का पूर्ण करने वाला है, मन्त्रज्ञ है, सर्व भावों को प्रदान करने वाला है, हर है।
कमण्डलुधरो धन्वी बाणहस्तः कपालवान् ।
अशनी शतघ्नी खड्गी पट्टिशी चायुधी महान् ॥ 13 ॥
अर्थ – कमण्डल धारी है, धनुष वाला है, बाणों के हाथी है, कपालधारी है, अशनी है, शत्रुओं को नष्ट करने वाली है, खड्गी है, पट्टी धारी है, महान है।
स्रुवहस्तः सुरूपश्च तेजस्तेजस्करो निधिः ।
उष्णीषी च सुवक्त्रश्च उदग्रो विनतस्तथा ॥ 14 ॥
अर्थ – स्रुव धारी है, सुरूप है, तेजस्वी है, उष्णीष धारी है, सुंदर वक्त्र वाला है, उद्ग्रो है, नमस्कार करने वाला है।
दीर्घश्च हरिकेशश्च सुतीर्थः कृष्ण एव च ।
सृगालरूपः सिद्धार्थो मुण्डः सर्वशुभङ्करः ॥ 15 ॥
अर्थ – लम्बे बाल वाला है, हरिकेश है, सुतीर्थ है, कृष्ण है, गिलहरी के रूप में है, सिद्धार्थ है, मुण्ड है, सब शुभ फल देने वाला है।
अजश्च बहुरूपश्च गन्धधारी कपर्द्यपि ।
ऊर्ध्वरेता ऊर्ध्वलिङ्ग ऊर्ध्वशायी नभस्स्थलः ॥ 16 ॥
अर्थ – वह अजर और बहुरूपवान है, गन्धधारी और कपर्द धारण करने वाला है, ऊर्ध्वरेता है, ऊर्ध्वलिङ्ग है, ऊर्ध्वशायी है और नभ में स्थित है।
त्रिजटी चीरवासाश्च रुद्रः सेनापतिर्विभुः ।
अहश्चरो नक्तञ्चरस्तिग्ममन्युः सुवर्चसः ॥ 17 ॥
अर्थ – वह त्रिजटी है, चीरवासी है, रुद्र है, सेनापति है, विभु है, अहश्चर है, नक्तञ्चर है, तीव्र मन्यु है, सुवर्चस है।
गजहा दैत्यहा कालो लोकधाता गुणाकरः ।
सिंहशार्दूलरूपश्च आर्द्रचर्माम्बरावृतः ॥ 18 ॥
अर्थ – वह गजहा है, दैत्यहा है, काल है, लोकधाता है, गुणाकर है, सिंहशार्दूल रूपधारी है, आर्द्रचर्माम्बर से आच्छादित है।
कालयोगी महानादः सर्वकामश्चतुष्पथः ।
निशाचरः प्रेतचारी भूतचारी महेश्वरः ॥ 19 ॥
अर्थ – वह कालयोगी है, महानाद है, सर्वकामा है, चतुष्पथ का ज्ञानी है, निशाचर है, प्रेतचारी है, भूतचारी है, महेश्वर है।
बहुभूतो बहुधरः स्वर्भानुरमितो गतिः ।
नृत्यप्रियो नित्यनर्तो नर्तकः सर्वलालसः ॥ 20 ॥
अर्थ – वह बहुभूत है, बहुधर है, स्वर्भानु है, अमित गति है, नृत्यप्रिय है, नित्यनर्त है, नर्तक है, सर्वलालस है।
घोरो महातपाः पाशो नित्यो गिरिरुहो नभः ।
सहस्रहस्तो विजयो व्यवसायो ह्यतन्द्रितः ॥ 21 ॥
अर्थ – वह घोर है, महातपाई है, पाशधारी है, नित्य है, गिरिरुह है, आकाश में स्थित है, सहस्रहस्ती है, विजयी है, व्यवसायी है, अतन्द्रित है।
अधर्षणो धर्षणात्मा यज्ञहा कामनाशकः ।
दक्षयागापहारी च सुसहो मध्यमस्तथा ॥ 22 ॥
अर्थ – वह अदर्शण है, धर्षणात्मा है, यज्ञहा है, कामना का नाश करने वाला है, दक्षयाग को छीनने वाला है, सुसहाय है, मध्यम है और तथा ही महत्त्वपूर्ण गुणों से युक्त है।
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तेजोपहारी बलहा मुदितोऽर्थोऽजितो वरः ।
गम्भीरघोषो गम्भीरो गम्भीरबलवाहनः ॥ 23 ॥
अर्थ – वह तेजोपहारी है, बलवान है, मुदित है, अर्थवान है, अजित है, वरदायी है, गम्भीरघोष है, गम्भीर है, गम्भीरबलवाहन है।
न्यग्रोधरूपो न्यग्रोधो वृक्षकर्णस्थितिर्विभुः ।
सुतीक्ष्णदशनश्चैव महाकायो महाननः ॥ 24 ॥
अर्थ – वह न्यग्रोधरूप है, न्यग्रोध है, वृक्षकर्ण में स्थित है, विभु है, सुतीक्ष्णदशन है, महाकाय है, महान है।
विष्वक्सेनो हरिर्यज्ञः सम्युगापीडवाहनः ।
तीक्ष्णतापश्च हर्यश्वः सहायः कर्मकालवित् ॥ 25 ॥
अर्थ – वह विष्वक्सेन है, हरि है, यज्ञ है, सम्युगापीडवाहन है, तीक्ष्णताप है, हर्यश्व है, कर्मकाल का सहायक है।
विष्णुप्रसादितो यज्ञः समुद्रो बडबामुखः ।
हुताशनसहायश्च प्रशान्तात्मा हुताशनः ॥ 26 ॥
अर्थ – वह विष्णु के प्रसाद से यज्ञ है, समुद्र है, बडबामुख है, हुताशन का सहायक है, प्रशान्तात्मा है, हुताशन है।
उग्रतेजा महातेजा जन्यो विजयकालवित् ।
ज्योतिषामयनं सिद्धिः सर्वविग्रह एव च ॥ 27 ॥
अर्थ – वह उग्रतेजा है, महातेजा है, जन्य है, विजयकाल का ज्ञाता है, ज्योतिषामयन है, सिद्धि है, सर्वविग्रह है, एवं च है।
शिखी मुण्डी जटी ज्वाली मूर्तिजो मूर्धगो बली ।
वेणवी पणवी ताली खली कालकटङ्कटः ॥ 28 ॥
अर्थ – वह शिखी है, मुण्डी है, जटी है, ज्वाला है, मूर्तिजों का आदिष्ट है, मूर्धगो है, बली है, वेणवी है, पणवी है, ताली है, खली है, काल कटङ्कट है।
नक्षत्रविग्रहमतिर्गुणबुद्धिर्लयोऽगमः ।
प्रजापतिर्विश्वबाहुर्विभागः सर्वगोमुखः ॥ 29 ॥
अर्थ – वह नक्षत्रविग्रहों का मति है, गुणबुद्धि है, प्रलय है, अगम है, प्रजापति है, विश्वबाहु है, विभाग है, सर्वगोमुख है।
विमोचनः सुसरणो हिरण्यकवचोद्भवः ।
मेघजो बलचारी च महीचारी स्रुतस्तथा ॥ 30 ॥
अर्थ – वह विमोचन है, सुसरण है, हिरण्यकवचोद्भव है, मेघज है, बलचारी है, महीचारी है, स्रुत है, तथा ही सभी गुणों का स्वामी है।
सर्वतूर्यनिनादी च सर्वातोद्यपरिग्रहः ।
व्यालरूपो गुहावासी गुहो माली तरङ्गवित् ॥ 31 ॥
अर्थ – वह सब ओर सूर्य के शब्द करने वाला है, सब ओर फैलने वाला है। वह नाग की आकार में है, गुहा में वास करने वाला है, गुहा को पालक है, जल की लहरों को जानने वाला है।
त्रिदशस्त्रिकालधृक्कर्मसर्वबन्धविमोचनः ।
बन्धनस्त्वसुरेन्द्राणां युधिशत्रुविनाशनः ॥ 32 ॥
अर्थ – वह त्रिदेवों के समयों के कर्मों को धारण करने वाला है, सभी बंधनों का मोचन करने वाला है। वह असुरराजों के बंधन करने वाला है, युद्ध के शत्रुओं का नाश करने वाला है।
साङ्ख्यप्रसादो दुर्वासाः सर्वसाधुनिषेवितः ।
प्रस्कन्दनो विभागज्ञो अतुल्यो यज्ञभागवित् ॥ 33 ॥
अर्थ – वह सांख्ययोग के आशीर्वाद से प्राप्त होने वाला है, दुर्वासा ऋषि का प्रसाद प्राप्त है, सभी साधुओं की सेवा में है। वह विभाजन करने वाला है, विभाजन का ज्ञान रखने वाला है, अतुल्य है, यज्ञों का भागी है ।
सर्ववासः सर्वचारी दुर्वासा वासवोऽमरः ।
हैमो हेमकरो यज्ञः सर्वधारी धरोत्तमः ॥ 34 ॥
अर्थ – वह सब जगह वास करने वाला है, सब परिचार करने वाला है, दुर्वासा ऋषि है, इन्द्र का वासी है, अमर है। वह हीरे का उद्भव है, हीरे को देने वाला है, यज्ञ है, सब के धारक है, उत्तम धारण करने वाला है।
लोहिताक्षो महाक्षश्च विजयाक्षो विशारदः ।
सङ्ग्रहो निग्रहः कर्ता सर्पचीरनिवासनः ॥ 35 ॥
अर्थ – वह लाल आंखों वाला है, महाकाय है, विजयाक्ष है, विशारद है। वह संग्रहण करने वाला है, निग्रहण करने वाला है, कर्म करने वाला है, सर्प की चादर में निवास करने वाला है।
मुख्योऽमुख्यश्च देहश्च काहलिः सर्वकामदः ।
सर्वकालप्रसादश्च सुबलो बलरूपधृक् ॥ 36 ॥
अर्थ – वह प्रमुख और अप्रमुख है, देह है, काहलि है, सभी कामनाओं को पूरा करने वाला है। वह सभी कालों का प्रसाद है, शक्तिशाली है, बल की आकृति धारण करने वाला है।
सर्वकामवरश्चैव सर्वदः सर्वतोमुखः ।
आकाशनिर्विरूपश्च निपाती ह्यवशः खगः ॥ 37 ॥
अर्थ – वह सभी कामनाओं का वरदान करने वाला है, सब समय में है, सब ओर मुख है। वह आकाश की अद्वितीयता है, अवश्य ही गिरने वाला पक्षी है।
रौद्ररूपोऽंशुरादित्यो बहुरश्मिः सुवर्चसी ।
वसुवेगो महावेगो मनोवेगो निशाचरः ॥ 38 ॥
अर्थ – वह रुद्ररूप सूर्य है, बहुत सारे किरणों वाला है, अत्युज्ज्वल है। वह वसु के गति से बहुत तेज है, महान गति है, मन की गति है, रात्रिभोजी निशाचर है।
सर्ववासी श्रियावासी उपदेशकरोऽकरः ।
मुनिरात्मनिरालोकः सम्भग्नश्च सहस्रदः ॥ 39 ॥
अर्थ – वह सबके आवासी हैं, श्रीवास हैं, उपदेश देने वाले हैं, अकर हैं। वे मुनि हैं, आत्मा में स्थित हैं, निरालोक हैं, सहस्रों रूपों में सम्पूर्ण हैं।
पक्षी च पक्षरूपश्च अतिदीप्तो विशाम्पतिः ।
उन्मादो मदनः कामो ह्यश्वत्थोऽर्थकरो यशः ॥ 40 ॥
अर्थ – वह पक्षी है और पक्षरूपी भी हैं, वह अत्यंत तेजस्वी हैं, विशाम्पति हैं। वह उन्माद है, मदन है, काम है, वह अश्वत्थ वृक्ष हैं, वह यश को प्रदान करने वाले हैं।
वामदेवश्च वामश्च प्राग्दक्षिणश्च वामनः ।
सिद्धयोगी महर्षिश्च सिद्धार्थः सिद्धसाधकः ॥ 41 ॥
अर्थ – वह वामदेव हैं और वाम भी हैं, उनका दिशा के सामने और दक्षिणे में होना भी हैं, वामन भी हैं। वे सिद्धयोगी हैं, महर्षि हैं, सिद्धार्थ हैं, सिद्धि को प्राप्त करने वाले हैं।
भिक्षुश्च भिक्षुरूपश्च विपणो मृदुरव्ययः ।
महासेनो विशाखश्च षष्ठिभागो गवाम्पतिः ॥ 42 ॥
अर्थ – वह भिक्षु हैं और भिक्षुरूपी भी हैं, वह व्यापारी हैं, कोमल हैं, अव्यय हैं। वह महासेना हैं, विशाखा नक्षत्र हैं, गोपालों का छठवां भाग हैं।
वज्रहस्तश्च विष्कम्भी चमूस्तम्भन एव च ।
वृत्तावृत्तकरस्तालो मधुर्मधुकलोचनः ॥ 43 ॥
अर्थ – वह वज्रायुध धारी हैं, विष्कम्भी और चमूस्तम्भन भी हैं। उनके हाथों में वज्र हैं, वे अविचलित और स्थिर हैं, वे काम-रस में प्रवृत्त हैं, और उनकी आंखें मधुर और मधु की तरह शोभा प्रदान करती हैं।
वाचस्पत्यो वाजसनो नित्याश्रमपूजितः ।
ब्रह्मचारी लोकचारी सर्वचारी विचारवित् ॥ 44 ॥
अर्थ – वे वाचस्पति हैं, वाजसनी धारण करने वाले हैं, वे नित्याश्रम में पूजित होते हैं। वे ब्रह्मचारी हैं, लोक में चरने वाले हैं, सभी चारित्रिक नियमों को पालन करते हैं, और विचारशील भी हैं।
ईशान ईश्वरः कालो निशाचारी पिनाकवान् ।
निमित्तस्थो निमित्तं च नन्दिर्नन्दिकरो हरिः ॥ 45 ॥
अर्थ – वे ईशान हैं, ईश्वर हैं, काल हैं, निशाचारी हैं, पिनाकधारी हैं। वे निमित्त में स्थित हैं, निमित्त को प्रदान करते हैं, वे नंदी और नन्दिकर्ता हैं, हरि हैं।
नन्दीश्वरश्च नन्दी च नन्दनो नन्दिवर्धनः ।
भगहारी निहन्ता च कालो ब्रह्मपितामहः ॥ 46 ॥
अर्थ – वह नन्दीश्वर हैं और नन्दी भी हैं, वह नन्दन हैं और नन्दिवर्धन भी हैं। वह भगहारी हैं, निहत्ता हैं, काल हैं, ब्रह्मा और पितामह हैं।
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चतुर्मुखो महालिङ्गश्चारुलिङ्गस्तथैव च ।
लिङ्गाध्यक्षः सुराध्यक्षो योगाध्यक्षो युगावहः ॥ 47 ॥
अर्थ – वह चतुर्मुख हैं, महालिङ्ग हैं, आरुलिङ्ग हैं और वही लिङ्गाध्यक्ष हैं। वह सुराध्यक्ष हैं, योगाध्यक्ष हैं, युगावाहक हैं।
बीजाध्यक्षो बीजकर्ता अध्यात्माऽनुगतो बलः ।
इतिहासः सकल्पश्च गौतमोऽथ निशाकरः ॥ 48 ॥
अर्थ – वह बीजाध्यक्ष हैं, बीजकर्ता हैं, अध्यात्म में लीन हैं, बलशाली हैं। वह इतिहास हैं, सकल्प हैं, गौतम और चन्द्रमा हैं।
दम्भो ह्यदम्भो वैदम्भो वश्यो वशकरः कलिः ।
लोककर्ता पशुपतिर्महाकर्ता ह्यनौषधः ॥ 49 ॥
अर्थ – वह दम्भ हैं, अदम्भ हैं, वैदम्भ हैं, वश्य हैं, वशकर हैं, कलियुग हैं। वह लोककर्ता हैं, पशुपति हैं, महाकर्ता हैं, अनौषधि हैं।
अक्षरं परमं ब्रह्म बलवच्छक्र एव च ।
नीतिर्ह्यनीतिः शुद्धात्मा शुद्धो मान्यो गतागतः ॥ 50 ॥
अर्थ – वह अक्षर हैं, परम ब्रह्म हैं, शक्तिशाली चक्र हैं। वह नीति हैं, अनीति हैं, शुद्ध आत्मा हैं, शुद्ध हैं, मान्य हैं, गति और अगति हैं।
बहुप्रसादः सुस्वप्नो दर्पणोऽथ त्वमित्रजित् ।
वेदकारो मन्त्रकारो विद्वान् समरमर्दनः ॥ 51 ॥
अर्थ – वह महान प्रसाद हैं, सुस्वप्न हैं, दर्पण हैं, त्वमित्र को जितने वाला हैं। वह वेदकार हैं, मन्त्रकार हैं, विद्वान् हैं, समर को मर्दन करने वाला हैं।
महामेघनिवासी च महाघोरो वशीकरः ।
अग्निज्वालो महाज्वालो अतिधूम्रो हुतो हविः ॥ 52 ॥
अर्थ – वह महामेघ में वास करने वाला हैं, महाघोर हैं, वशीकरण करने वाला हैं। वह अग्नि की ज्वाला हैं, महाज्वाल हैं, अत्यंत धूम्रपान करने वाला हवन हैं।
वृषणः शङ्करो नित्यं वर्चस्वी धूमकेतनः ।
नीलस्तथाऽङ्गलुब्धश्च शोभनो निरवग्रहः ॥ 53 ॥
अर्थ – वह वृषण हैं, शङ्कर हैं, नित्यत्व में स्थित हैं। वह वर्चस्वान हैं, धूमकेतु हैं, नील हैं, आभा से युक्त हैं, निरवग्रह हैं।
स्वस्तिदः स्वस्तिभावश्च भागी भागकरो लघुः ।
उत्सङ्गश्च महाङ्गश्च महागर्भपरायणः ॥ 54 ॥
अर्थ – वह स्वस्तिदा हैं, स्वस्तिभाव देने वाला हैं, भाग्यशाली हैं, भाग्य का करने वाला हैं, लघु हैं। वह उत्सङ्ग करने वाला हैं, महाङ्ग हैं, महागर्भ में परायण हैं।
कृष्णवर्णः सुवर्णश्च इन्द्रियं सर्वदेहिनाम् ।
महापादो महाहस्तो महाकायो महायशाः ॥ 55 ॥
अर्थ – वह कृष्णवर्ण हैं, सुवर्ण हैं, सभी इन्द्रियों का स्वामी हैं। वह महापाद हैं, महाहस्त हैं, महाकाय हैं, महायशस्वी हैं।
महामूर्धा महामात्रो महानेत्रो निशालयः ।
महान्तको महाकर्णो महोष्ठश्च महाहनुः ॥ 56 ॥
अर्थ – वह महामूर्धा हैं, महामात्रा हैं, महानेत्र हैं, निशालय हैं। वह महान्तक हैं, महाकर्ण हैं, महोष्ठ हैं, महाहनु हैं।
महानासो महाकम्बुर्महाग्रीवः श्मशानभाक् ।
महावक्षा महोरस्को ह्यन्तरात्मा मृगालयः ॥ 57 ॥
अर्थ – वह महानास हैं, महाकम्बु हैं, महाग्रीव हैं, श्मशान में निवास करने वाला हैं। वह महावक्षा हैं, महोरस्क हैं, अन्तरात्मा हैं, मृगालय हैं।
लम्बनो लम्बितोष्ठश्च महामायः पयोनिधिः ।
महादन्तो महादम्ष्ट्रो महाजिह्वो महामुखः ॥ 58 ॥
अर्थ – वह लम्बन हैं, लम्बितोष्ठ हैं, महामाय हैं, पयोनिधि हैं। वह महादन्त हैं, महादम्ष्ट्र हैं, महाजिह्वा हैं, महामुख हैं।
महानखो महारोमा महाकोशो महाजटः ।
प्रसन्नश्च प्रसादश्च प्रत्ययो गिरिसाधनः ॥ 59 ॥
अर्थ – वह महानख हैं, महारोमा हैं, महाकोश हैं, महाजट हैं। वह प्रसन्न हैं, प्रसाद हैं, प्रत्यय हैं, गिरिसाधन हैं।
स्नेहनोऽस्नेहनश्चैव अजितश्च महामुनिः ।
वृक्षाकारो वृक्षकेतुरनलो वायुवाहनः ॥ 60 ॥
अर्थ – वह स्नेहन हैं, अस्नेहन हैं, अजित हैं, महामुनि हैं। वह वृक्षाकार हैं, वृक्षकेतु हैं, अनल हैं, वायुवाहन हैं॥
गण्डली मेरुधामा च देवाधिपतिरेव च ।
अथर्वशीर्षः सामास्य ऋक्सहस्रामितेक्षणः ॥ 61 ॥
अर्थ – गण्डली में निवास करने वाले हैं, मेरुधाम में स्थित हैं, देवाधिपति की तरह हैं। वे अथर्वशीर्षा हैं, सामग्री के सहस्रों के एक्षण हैं।
यजुः पादभुजो गुह्यः प्रकाशो जङ्गमस्तथा ।
अमोघार्थः प्रसादश्च अभिगम्यः सुदर्शनः ॥ 62 ॥
अर्थ – वे यजुः पादभुज हैं, गुह्य हैं, प्रकाश हैं, गतिशील हैं। वे अमोघार्थ हैं, प्रसाद हैं, अभिगम्य हैं, सुदर्शन हैं।
उपकारः प्रियः सर्वः कनकः काञ्चनच्छविः ।
नाभिर्नन्दिकरो भावः पुष्करः स्थपतिः स्थिरः ॥ 63 ॥
अर्थ – वे उपकार हैं, प्रिय हैं, सभी को सोने और चांदी के समान चमकदार हैं। वे नाभि हैं, नन्दिकर हैं, भाव हैं, सृष्टि करने वाले हैं, स्थपति हैं, स्थिर हैं।
द्वादशस्त्रासनश्चाद्यो यज्ञो यज्ञसमाहितः ।
नक्तं कलिश्च कालश्च मकरः कालपूजितः ॥ 64 ॥
अर्थ – वे द्वादशासन हैं, यज्ञ हैं, यज्ञ में समर्पित हैं। वे रात्रि हैं, काल हैं, मकर राशि हैं, काल की पूजा करने वाला हैं।
सगणो गणकारश्च भूतवाहनसारथिः ।
भस्मशयो भस्मगोप्ता भस्मभूतस्तरुर्गणः ॥ 65 ॥
अर्थ – वे सहगण हैं, गणकार हैं, भूतों को वाहन में बैठाने वाले हैं। वे भस्मशय हैं, भस्म रक्षक हैं, भस्म का संचय करने वाले हैं, वृक्षों की गणना हैं।
लोकपालस्तथालोको महात्मा सर्वपूजितः ।
शुक्लस्त्रिशुक्लः सम्पन्नः शुचिर्भूतनिषेवितः ॥ 66 ॥
अर्थ – लोकपाल हैं, तथा अलोक हैं, महात्मा हैं और सभी द्वारा पूज्य हैं। वे शुक्ल रंग के हैं, त्रिशुक्ल में पूर्णता प्राप्त हैं, शुचि हैं, भूतों द्वारा सेवित हैं।
आश्रमस्थः क्रियावस्थो विश्वकर्ममतिर्वरः ।
विशालशाखस्ताम्रोष्ठो ह्यम्बुजालः सुनिश्चलः ॥ 67 ॥
अर्थ – वे आश्रम में स्थित हैं, क्रियावस्था में हैं, विश्वकर्मा की मानसिकता हैं, वे विशाल शाखाएं रखने वाले हैं, ताम्रकृष्ण होंठ हैं, जलमय उद्धारण पर निश्चल है।
कपिलः कपिशः शुक्लः आयुश्चैव परोः ।
गन्धर्वो ह्यदितिस्तार्क्ष्यः सुविज्ञेयः सुशारदः ॥ 68 ॥
अर्थ – वे कपिल हैं, कपि हैं, शुक्ल रंग हैं, परों के आयु हैं। वे गन्धर्व हैं, अदिति के पुत्र हैं, गरुड़ हैं, जिन्हें समझना चाहिए, वे सुखद हैं।
परश्वधायुधो देवः ह्यनुकारी सुबान्धवः ।
तुम्बवीणो महाक्रोध ऊर्ध्वरेता जलेशयः ॥ 69 ॥
अर्थ – वे परश्वधारी देवता हैं, वे अनुकारी हैं, सुबान्धु हैं। वे तुंबवीणा वादक हैं, महाक्रोध हैं, ऊर्ध्वरेता हैं, जल के स्वामी हैं।
उग्रो वंशकरो वंशो वंशनादो ह्यनिन्दितः ।
सर्वाङ्गरूपो मायावी सुहृदो ह्यनिलोऽनलः ॥ 70 ॥
अर्थ – वे उग्र हैं, वंशकारी हैं, वंश हैं, वंशनाद हैं, जिन्हें निंदा नहीं की जा सकती। वे सभी अंगों के स्वरूप हैं, मायावी हैं, मित्र हैं, अनिल देवता हैं।
बन्धनो बन्धकर्ता च सुबन्धनविमोचनः ।
सयज्ञारिः सकामारिर्महादम्ष्ट्रो महायुधः ॥ 71 ॥
अर्थ – वे बन्धन करने वाले हैं, बंधकार्ता हैं और सुबंधन का मुक्ति देने वाले हैं। वे सहयज्ञ हैं, कामना के साथ करने वाले हैं, महान योद्धा हैं।
बहुधानिन्दितः शर्वः शङ्करः शङ्करोऽधनः ।
अमरेशो महादेवो विश्वदेवः सुरारिहा ॥ 72 ॥
अर्थ – वे बहुतों द्वारा निंदित हैं, रुद्र हैं, शङ्कर हैं, धनहीन हैं। वे देवों के राजा हैं, महादेव हैं, विश्वदेव हैं, दैत्यों का वध करने वाले हैं।
अहिर्बुध्न्योऽनिलाभश्च चेकितानो हरिस्तथा ।
अजैकपाच्च कापाली त्रिशङ्कुरजितः शिवः ॥ 73 ॥
अर्थ – वे सर्प नाग हैं, वायु के द्वारा प्राप्ति हैं, यमराज हैं, विष्णु हैं। वे अजन्य, जन्मरहित हैं, कपाली हैं, अग्नि को पराजित करने वाले हैं, शिव हैं।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुः स्कन्दो वैश्रवणस्तथा ।
धाता शक्रश्च विष्णुश्च मित्रस्त्वष्टा ध्रुवो धरः ॥ 74 ॥
अर्थ – वे धन्वन्तरि (आयुर्वेद के पिता) हैं, धूमकेतु हैं, कार्तिकेय हैं, वैश्रवण भी हैं। वे सृष्टिकर्ता, इंद्र, विष्णु, मित्र, त्वष्टा, ध्रुव और धर हैं।
प्रभावः सर्वगो वायुरर्यमा सविता रविः ।
उषङ्गुश्च विधाता च मान्धाता भूतभावनः ॥ 75 ॥
अर्थ – वे प्रभाव (महत्त्व) हैं, सर्वग (सर्वव्यापी) हैं, वायु हैं, अग्नि हैं, सूर्य हैं, रवि हैं। वे अग्नि, विधाता , मान्धाता और भूतभावन हैं।
विभुर्वर्णविभावी च सर्वकामगुणावहः ।
पद्मनाभो महागर्भश्चन्द्रवक्त्रोऽनिलोऽनलः ॥ 76 ॥
अर्थ – वे सर्वव्यापी हैं, वर्णों को विभाजित करने वाले हैं, सभी कामनाओं के गुणों को धारण करने वाले हैं। वे पद्मनाभ हैं, ब्रह्मा हैं, चंद्रमा के धारक हैं, अनिल हैं, अग्नि हैं।
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बलवांश्चोपशान्तश्च पुराणः पुण्यचञ्चुरी ।
कुरुकर्ता कुरुवासी कुरुभूतो गुणौषधः ॥ 77 ॥
अर्थ – वे बलवान हैं, शान्त हैं, पुराण हैं, पुण्यचंचूरी हैं। वे कृष्ण हैं, कुरुवासी हैं, कुरु वंश के पिता हैं, गुणौषधि हैं।
सर्वाशयो दर्भचारी सर्वेषां प्राणिनाम्पतिः ।
देवदेवः सुखासक्तः सदसत्सर्वरत्नवित् ॥ 78 ॥
अर्थ – वे सभी शरीरों के परिपूर्ण करने वाले हैं, दर्भाचारी हैं, सभी प्राणियों के पति हैं। वे देवदेव हैं, सुख में आसक्त हैं, सत्यसंध और सर्वरत्नों को जानने वाले हैं।
कैलासगिरिवासी च हिमवद्गिरिसंश्रयः ।
कूलहारी कूलकर्ता बहुविद्यो बहुप्रदः ॥ 79 ॥
अर्थ – वे कैलास पर निवास करने वाले हैं, हिमालय पर आश्रय लेने वाले हैं। वे कूलहारी हैं, कुल कारणकर्ता हैं, बहुविद्या वाले हैं, बहुदेवता दान करने वाले हैं।
वणिजो वर्धकी वृक्षो वकुलश्चन्दनछ्छदः ।
सारग्रीवो महाजत्रुरलोलश्च महौषधः ॥ 80 ॥
अर्थ – वे वणिजा हैं, वृक्ष हैं, वकुल वृक्ष हैं, सुगंधित रूप में विश्राम करने वाले हैं। वे हठी वानर हैं, महाजात्रु हैं, लुभावने वाले हैं, बड़ी चिकित्साओं को जानने वाले हैं।
सिद्धार्थकारी सिद्धार्थश्छन्दोव्याकरणोत्तरः ।
सिंहनादः सिंहदम्ष्ट्रः सिंहगः सिंहवाहनः ॥ 81 ॥
अर्थ – वे सिद्धि को प्राप्त करने वाले हैं, सिद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने वाले हैं, छन्दोव्याकरण के उत्तमज्ञ हैं। वे सिंहनाद हैं, सिंह के दंतों वाले हैं, सिंह के समान होने वाले हैं, सिंहवाहन हैं l
प्रभावात्मा जगत्कालस्थालो लोकहितस्तरुः ।
सारङ्गो नवचक्राङ्गः केतुमाली सभावनः ॥ 82 ॥
अर्थ – वे प्रभावों का स्वरूप हैं, जगत् के समय और स्थान हैं, लोगों के हित करने वाले हैं, वृक्ष हैं। वे कृष्ण हैं, नव चक्र वाले हैं, केतुकों के माला धारण करने वाले हैं, सभा में निवास करने वाले हैं।
भूतालयो भूतपतिरहोरात्रमनिन्दितः ॥ 83 ॥
अर्थ – वे भूतों का आश्रय स्थान हैं, भूतों के स्वामी हैं, दिन और रात को अनिन्दित करने वाले हैं।
वाहिता सर्वभूतानां निलयश्च विभुर्भवः ।
अमोघः सम्यतो ह्यश्वो भोजनः प्राणधारणः ॥ 84 ॥
अर्थ – वे सभी प्राणियों के वाहक हैं, निवास स्थान हैं, विभु हैं, भव हैं। वे अमोघ हैं, सम्यक हैं, अश्वमेध यज्ञ का आनंद लेने वाले हैं, भोजन के प्राणधारक हैं।
धृतिमान् मतिमान् दक्षः सत्कृतश्च युगाधिपः ।
गोपालिर्गोपतिर्ग्रामो गोचर्मवसनो हरिः ॥ 85 ॥
अर्थ – वे धृतिमान हैं, मतिमान हैं, दक्ष हैं, पूजित हैं, युगाधिप हैं। वे कृष्ण हैं, गोविंद का स्वामी हैं, ग्राम हैं, गोचर्म के धारक हैं।
हिरण्यबाहुश्च तथा गुहापालः प्रवेशिनाम् ।
प्रकृष्टारिर्महाहर्षो जितकामो जितेन्द्रियः ॥ 86 ॥
अर्थ – वे हिरण्यबाहु हैं और गुहापाल हैं, प्रवेशिनों के प्रमुख हैं। वे अत्यंत प्रमोद के साथ युक्त हैं, सर्वाभीष्ट को प्राप्त करने वाले हैं और इन्द्रियों को जीत लिया है।
गान्धारश्च सुवासश्च तपस्सक्तो रतिर्नरः ।
महागीतो महानृत्यो ह्यप्सरोगणसेवितः ॥ 87 ॥
अर्थ – वे मधुर वाणी वाले हैं और सुवास हैं। वे तपस्या में लीन हैं और रति में रमते हैं। वे महागीत करते हैं, महानृत्य करते हैं और अप्सरा गण की सेवा में हैं।
महाकेतुर्महाधातुर्नैकसानुचरश्चलः ।
आवेदनीय आदेशः सर्वगन्धसुखावहः ॥ 88 ॥
अर्थ – वे महाकेतु हैं, महाधातु हैं और नैकसानुचर हैं। वे चलनेवाले हैं और सभी गन्धों को लाने वाले हैं।
तोरणस्तारणो वातः परिधीपतिखेचरः ।
सम्योगो वर्धनो वृद्धो ह्यतिवृद्धो गुणाधिकः ॥ 89 ॥
अर्थ – वे द्वार प्रवेश करने वाले हैं, पार करने वाले हैं, वायु हैं और परिधीपति के चरण के आस-पास घूमने वाले हैं। वे सम्योग हैं, वृद्धि करने वाले हैं, वृद्ध हैं और गुणों के अधिकारी हैं।
नित्य आत्मा सहायश्च देवासुरपतिः पतिः ।
युक्तश्च युक्तबाहुश्च देवो दिवि सुपर्वणः ॥ 90 ॥
अर्थ – वे नित्यात्मा हैं और सहाय हैं, देवासुरपति हैं और पति हैं। वे युक्त हैं और संयुक्त बाहुओं वाले हैं, दिव्य विमानों में स्थित देवता हैं।
आषाढश्च सुषाढश्च ध्रुवोऽथ हरिणो हरः ।
वपुरावर्तमानेभ्यो वसुश्रेष्ठो महापथः ॥ 91 ॥
अर्थ – वे आषाढ हैं और सुषाढ हैं, ध्रुव हैं और हरि हैं। उनकी शरीर रेखा से ऊपर होने वाले वे वसु श्रेष्ठ हैं और महापथ हैं।
शिरोहारी विमर्शश्च सर्वलक्षणलक्षितः ।
अक्षश्च रथयोगी च सर्वयोगी महाबलः ॥ 92 ॥
अर्थ – वे शिरोहारी हैं और विमर्श करने वाले हैं, सभी लक्षणों से युक्त हैं। वे अक्ष हैं, रथयोगी हैं और सम्पूर्ण योगों के ज्ञाता हैं, महान बलशाली हैं।
समाम्नायोऽसमाम्नायस्तीर्थदेवो महारथः ।
निर्जीवो जीवनो मन्त्रः शुभाक्षो बहुकर्कशः ॥ 93 ॥
अर्थ – वे वेदों का संग्रह हैं और वेदान्त हैं, तीर्थों के देवता हैं और महारथी हैं। वे अजर-अमर हैं और जीवन-मंत्र हैं, शुभ की क्षय हैं और बहुत कठोर हैं।
रत्नप्रभूतो रक्ताङ्गो महार्णवनिपानवित् ।
मूलं विशालो ह्यमृतो व्यक्ताव्यक्तस्तपोनिधिः ॥ 94 ॥
अर्थ – वे रत्नों से युक्त हैं, लाल अंग हैं, महासागर के पान करने वाले हैं। वे विशाल हैं, अमृत स्वरूप हैं, व्यक्त-अव्यक्त हैं और तपस्या का संग्रहक हैं।
आरोहणोऽधिरोहश्च शीलधारी महायशाः ।
सेनाकल्पो महाकल्पो योगो योगकरो हरिः ॥ 95 ॥
अर्थ – वे आरोहण करने वाले हैं और अधिरोहण करने वाले हैं, शील धारी हैं और महायशास्वी हैं। वे सेनाओं का कल्प हैं, महाकल्प हैं, योग को प्राप्त करने वाले हैं और योग का प्रकारक हैं, हरि हैं।
युगरूपो महारूपो महानागहनो वधः ।
न्यायनिर्वपणः पादः पण्डितो ह्यचलोपमः ॥ 96 ॥
अर्थ – वे युगरूप हैं, महारूप हैं, महानाग को वध करने वाले हैं। वे न्याय के पाद हैं, पण्डित हैं और अचल के समान हैं।
बहुमालो महामालः शशी हरसुलोचनः ।
विस्तारो लवणः कूपस्त्रियुगः सफलोदयः ॥ 97 ॥
अर्थ – वे बहुमाल (बहुत गले में हार) हैं, महामाल हैं, शशी हैं, हरसुलोचन हैं। वे विस्तार हैं, सागर हैं, कुआँ हैं, त्रियुग हैं, सफलोदय हैं।
त्रिलोचनो विषण्णाङ्गो मणिविद्धो जटाधरः ।
बिन्दुर्विसर्गः सुमुखः शरः सर्वायुधः सहः ॥ 98 ॥
वे त्रिलोचन हैं, सुखी शरीर वाले हैं, मणि से विभूषित हैं, जटाधारी हैं। वे बिंदु हैं, विसर्ग हैं, सुमुख हैं, शर हैं, सर्व आयुध हैं, सहन करने वाले हैं।
निवेदनः सुखाजातः सुगन्धारो महाधनुः ।
गन्धपाली च भगवानुत्थानः सर्वकर्मणाम् ॥ 99 ॥
अर्थ – वे निवेदन हैं, सुख से जन्मे हुए हैं, सुगंधा हैं, महाधनु हैं। वे गन्धपाली हैं, भगवान के उत्थान हैं, सभी कर्मों के आदिष्ठान हैं।
मन्थानो बहुलो वायुः सकलः सर्वलोचनः ।
तलस्तालः करस्थाली ऊर्ध्वसंहननो महान् ॥ 100 ॥
अर्थ – वे हलचल हैं, बहुत हैं, हवा हैं, सबका दर्शन करने वाले हैं। वे ताल हैं, भूमि हैं, कर में स्थित हैं, ऊर्ध्वसंहनन हैं, महान् हैं।
छत्रं सुछत्रो विख्यातो लोकः सर्वाश्रयः क्रमः ।
मुण्डो विरूपो विकृतो दण्डी कुण्डी विकुर्वणः ॥ 101 ॥
अर्थ – छत्र, अत्यंत सुंदर छत्र है, प्रसिद्ध है, लोग, सबका आश्रय है, क्रम हैं, मूंड, विचित्र रूपवाले है, विकृति में, दण्डी दंड धारण करने वाले, कुण्डी कुंडल धारण करने वाले, विभिन्न रूपों में परिवर्तित हैं।
हर्यक्षः ककुभो वज्री शतजिह्वः सहस्रपात् ।
सहस्रमूर्धा देवेन्द्रः सर्वदेवमयो गुरुः ॥ 102 ॥
अर्थ – हजार सिर धारण करने वाले, देवों का अधिपति, सभी देवताओं से युक्त, गुरु, आदरणीय हैं।
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सहस्रबाहुः सर्वाङ्गः शरण्यः सर्वलोककृत् ।
पवित्रं त्रिककुन्मन्त्रः कनिष्ठः कृष्णपिङ्गलः ॥ 103 ॥
अर्थ – हजार बाहु धारण करने वाले, सभी अंगों वाले, शरण लेने योग्य, सभी लोकों के निर्माता, पवित्र, तीनों लोकों का मन्त्र, अत्यन्त छोटा, कृष्णवर्ण और पीले वर्ण धारण करने वाले हैं।
ब्रह्मदण्डविनिर्माता शतघ्नी पाशशक्तिमान् ।
पद्मगर्भो महागर्भो ब्रह्मगर्भो जलोद्भवः ॥ 104 ॥
अर्थ – दण्ड का निर्माता, शत्रुओं को नष्ट करने वाली, पाश शक्तियों वाला, पद्म की गर्भधारण करने वाला, महागर्भ धारण करने वाला, ब्रह्मा की गर्भधारण करने वाला, जल से उत्पन्न होने वाला हैं।
गभस्तिर्ब्रह्मकृद्ब्रह्मी ब्रह्मविद्ब्राह्मणो गतिः ।
अनन्तरूपो नैकात्मा तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः ॥ 105 ॥
अर्थ – ब्रह्म के सृष्टि करने वाला, ब्रह्मा की पत्नी, ब्रह्म को जानने वाला, ब्राह्मणों की गति, अनंत रूप वाला, एक आत्मा वाला, तीक्ष्ण तेज वाला, स्वयंभू ब्रह्मा हैं।
ऊर्ध्वगात्मा पशुपतिर्वातरंहा मनोजवः ।
चन्दनी पद्मनालाग्रः सुरभ्युत्तरणो नरः ॥ 106 ॥
अर्थ – ऊर्ध्वगामी, पशुपति शिव, वायु द्वारा उड़ाने वाला, मन की गति वाला, चन्दनी वनमाला धारण करने वाला, पद्मनाभी, सुरभि से उठाने वाला, मनुष्य हैं।
कर्णिकारमहास्रग्वी नीलमौलिः पिनाकधृत् ।
उमापतिरुमाकान्तो जाह्नवीभृदुमाधवः ॥ 107 ॥
अर्थ – कर्णिकार महामाला धारण करने वाला, नीलकंठी शिव, पिनाक धारी, उमापति शिव, उमा का पति, जह्नवी धारी शिव, उमा के पति हैं।
वरो वराहो वरदो वरेण्यः सुमहास्वनः ।
महाप्रसादो दमनः शत्रुहा श्वेतपिङ्गलः ॥ 108 ॥
अर्थ – श्रेष्ठ, वराह अवतार, वरदानकर्ता, वन्दनीय, सुमहान वाहन वाला, महान प्रसाद, शत्रुओं को निग्रह करने वाला, शत्रु नाशक, श्वेत-पिंगल रूप वाला हैं।
प्रीतात्मा परमात्मा च प्रयतात्मा प्रधानधृत् ।
सर्वपार्श्वमुखस्त्र्यक्षो धर्मसाधारणो वरः ॥ 109 ॥
अर्थ – प्रेमशील आत्मा हैं, सर्वोच्च आत्मा हैं, प्रयासशील आत्मा हैं, प्रमुख धारक हैं। वे सभी दिशाओं में मुखवाले हैं, त्रियक्ष तीनों आंखों वाले हैं, धर्म के साधारण धर्म के साधनों के आदान-प्रदान में निपुण हैं, वर श्रेष्ठ हैं।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा अमृतो गोवृषेश्वरः ।
साध्यर्षिर्वसुरादित्यः विवस्वान्सविताऽमृतः ॥ 110 ॥
अर्थ – सबका आत्मा हैं, सूक्ष्म आत्मा हैं, अमर, अविनाशी हैं, गौवंश के स्वामी हैं। साध्यों का ऋषि हैं, देवताओं में एक प्रकार के वसु नामक गण हैं, अदित्य सूर्य देवता हैं, सूर्य हैं, सूर्य देवता हैं, अमृत अमर, अविनाशी हैं।
व्यासः सर्गः सुसङ्क्षेपो विस्तरः पर्ययो नरः ।
ऋतुः संवत्सरो मासः पक्षः सङ्ख्यासमापनः ॥ 111 ॥
अर्थ – वेदव्यास हैं, सृष्टि हैं, संक्षेप में विवरण हैं, विस्तार में विवरण हैं, परिवर्तन हैं, मनुष्य हैं। ऋतु मौसम हैं, संवत्सर वर्ष हैं, मास माह हैं, पक्ष हैं, गणना हैं, समापन समाप्ति हैं।
कला काष्ठा लवा मात्रा मुहूर्ताहः क्षपाः क्षणाः ।
विश्वक्षेत्रं प्रजाबीजं लिङ्गमाद्यस्सुनिर्गमः ॥ 112 ॥
अर्थ – कला, तूखड़ा, लवा , मात्रा, मुहूर्त, पल, क्षण हैं। विश्व जगत हैं, प्रजा के बीज हैं, लिंग हैं,आदि हैं, उद्भव हैं।
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं पिता माता पितामहः ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ॥ 113 ॥
अर्थ – असत् और सत्, प्रकट हैं, अप्रकट हैं, पिता हैं, माता हैं, पितामह हैं। स्वर्ग के द्वार हैं, प्रजा के द्वार हैं, मोक्ष के द्वार हैं, तीर्थस्थान हैं।
निर्वाणं ह्लादनश्चैव ब्रह्मलोकः परागतिः ।
देवासुरविनिर्माता देवासुरपरायणः ॥ 114 ॥
अर्थ – मोक्ष हैं, आनंद हैं, ब्रह्मलोक हैं, परम गति हैं। देवता और असुरों के निर्माता हैं, देवता और असुरों में रमनेवाले हैं।
देवासुरगुरुर्देवो देवासुरनमस्कृतः ।
देवासुरमहामात्रो देवासुरगणाश्रयः ॥ 115 ॥
अर्थ – देवता और असुरों के गुरु हैं, देवता और असुरों द्वारा पूज्य हैं। देवता और असुरों का महामात्रा, देवता और असुरों का आश्रय हैं।
देवासुरगणाध्यक्षो देवासुरगणाग्रणीः ।
देवादिदेवो देवर्षिर्देवासुरवरप्रदः ॥ 116 ॥
अर्थ – देवता और असुरों के नेता हैं, देवता और असुरों के संग्रहक हैं। देवताओं का देवता हैं, देवता ऋषि हैं, देवता और असुरों को वरदान देने वाले हैं।
देवासुरेश्वरो विश्वो देवासुरमहेश्वरः ।
सर्वदेवमयोऽचिन्त्यो देवतात्माऽऽत्मसम्भवः ॥ 117 ॥
अर्थ – देवता और असुरों के ईश्वर हैं, विश्व हैं, देवता और असुरों के महेश्वर हैं। सभी देवताओं से युक्त हैं, अचिंत्य हैं, देवता की आत्मा हैं, अपने-आप उत्पन्न हैं।
उद्भित्त्रिविक्रमो वैद्यो विरजो नीरजोऽमरः ।
ईड्यो हस्तीश्वरो व्याघ्रो देवसिंहो नरर्षभः ॥ 118 ॥
अर्थ – उत्क्रमित होने वाले, वैद्य, निर्मल, कमल से उत्पन्न होने वाले, पूज्य, हाथी के स्वामी, बाघ, देवता सिंह, मनुष्यों का मुख्य श्रेष्ठ हैं।
विबुधोऽग्रवरः सूक्ष्मः सर्वदेवस्तपोमयः ।
सुयुक्तः शोभनो वज्री प्रासानाम्प्रभवोऽव्ययः ॥ 119 ॥
अर्थ – सभी देवताओं का प्रमुख, सूक्ष्म, सभी देवताएं तपस्या से पूर्ण, सुयोग्य, सुन्दर, वज्रयुध्द, आयुधों के स्वामी, अविनाशी हैं।
गुहः कान्तो निजः सर्गः पवित्रं सर्वपावनः ।
शृङ्गी शृङ्गप्रियो बभ्रू राजराजो निरामयः ॥ 120 ॥
अर्थ – हृदय में स्थित, मनोहारी, अपना ही सृष्टि, सबको शुद्ध करने वाला, शृङ्गी धारी, शृङ्गी प्रिय, भ्रू, राजों का राजा, रोगमुक्त हैं।
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अभिरामः सुरगणो विरामः सर्वसाधनः ।
ललाटाक्षो विश्वदेवो हरिणो ब्रह्मवर्चसः ॥ 121 ॥
अर्थ – मनोहारी, देवता समूह, विश्राम, सभी साधनाओं का साधन, ललाट के आंख़ों वाला, विश्वदेवता, हिरण्य, ब्रह्मतेज हैं।
स्थावराणाम्पतिश्चैव नियमेन्द्रियवर्धनः ।
सिद्धार्थः सिद्धभूतार्थोऽचिन्त्यः सत्यव्रतः शुचिः ॥ 122 ॥
अर्थ – अचल और चलात्मक जीवों के स्वामी, इंद्रियों के नियमन करने वाले, सिद्धि का उद्देश्य, सिद्धि और भूत के लक्ष्य के बारे में अचिंत्य, सत्यव्रत धारी, शुद्ध हैं।
व्रताधिपः परं ब्रह्म भक्तानाम्परमागतिः।
विमुक्तो मुक्ततेजाश्च श्रीमान् श्रीवर्धनो जगत् ॥ 123 ॥
अर्थ – व्रतों के स्वामी, परम ब्रह्म, भक्तों की अत्यंत प्राप्ति, मुक्त होने वाले, मुक्ति की तेज, श्रीमंत, श्री को बढ़ाने वाला, जगत् हैं।
इति श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र ॥
इस प्रकार श्री Shiv sahastra naam stotram in Hindi पूर्ण हुआ।
FAQ – Shiv sahastra naam stotram in Hindi
शिव सहस्त्र नाम स्त्रोत क्या हैं?
शिव सहस्त्र नाम स्त्रोत में भगवान शिव के हजार नामों की महिमा का वर्णन होता हैं और यह बहुत ही लाभकारी होता हैं।
शिव सहस्त्र नाम जाप से क्या लाभ होता हैं ?
ग्रह दोष से मुक्ति हेतु
शिव पुराण के अनुसार, Shiv Sahastra naam in Hindi का मन में जाप करते हुए शिवलिंग पर विल्व पत्र अर्पित से समस्त जीवन के ग्रह दोष दूर होते हैं और हम ग्रह दोष से मुक्त हो जाते हैं।
तंत्र-मंत्र क्रिया से छुटकारा
जब भी हमारे उपर किसी प्रकार की तंत्र मंत्र की क्रिया की जाती हैं और या फिर जब हम मंत्र उच्चारण करते समय जो हमसे गलती हो जाती हैं जिससे हमें दोष लगता हैं,यह तंत्र-मंत्र से उत्पन्न होने वाले दोषों से हमारी रक्षा करता है।
मानसिक शांति हेतु
इस शिव शहस्त्र नाम स्त्रोत का जाप करने से नियमि हमारा मन शांत होता है और मानशिक शांति प्राप्त होती है।
सकारात्मक ऊर्जा की उन्नति
शिव सहस्त्रनाम का निरन्तर जाप करने से सकारात्मक ऊर्जा का हमारे जीवन मे प्रवेश होता हैं। जो हमारे जीवन को नई उचाइयों तक पहुंचाता हैं।
घर में सुख और समृद्धि
इस पवित्र शिव सहस्त्र नाम का पाठ करने से हमारे घर में सुख और समृद्धि का निरन्तर वास हो जाता हैं।
शिव सहस्त्र नाम का क्या अर्थ होता हैं ?
शिव सहस्त्र नाम का अर्थ होता हैं भगवान शिव के एक हजार नाम और स्त्रोत बहुत ही लाभकारी होता हैं।
शिव सहस्त्र नाम स्त्रोत का जाप कैसे करे?
सोमवार या प्रदोष काल और किसी भी शिवरात्रि को आप सच्चे मन से भगवान शिव को याद करते हुए शिव सहस्त्र नाम का जाप कर सकते हैं और आपको सफलता की प्राप्ति भी हो सकती हैं।और इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आप शुद्ध हो कर और भगवान शिव का अभिषेक कर और उनके सम्मुख दीपक जलाकर इस जाप का शुभारंभ करे।
शिव सहस्त्र नाम की उत्पत्ति कैसे हुई ?
प्राचीन समय की बात हैं, जब असुर बहुत बलशाली होकर मनुष्यों को कष्ट देने लगे और धर्म का नाश करने लगे | उन सभी महाबली और महा पराकमी असुरों .. से भयभीत हो सभी देवताओं ने देवों के रक्षक भगवान श्री नारायण से अपनी संपूर्णव्यथा बताई। तब भगवान विष्णु जी ने कैलाश धाम पर जाकर भगवान् शंकर की विधिपूर्वक पूजा करने लगे । भगवान विष्णु ने सहस्त्र नामों से भगवान शंकर की स्तुति की, और स्तुति करते समय प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल भगवान शंकर को चढ़ाते थे | तब भगवान् शिव जी ने श्री नारायण जी के भक्तिभाव की परीक्षा के लिये उनके लाये हुए एक हजार कमल के फूलों से एक को छिपा दिया |
भगवान शंकर की इस माया का श्री हरि को बिल्कुल भी पता नहीं लगा। जब भगवान विष्णु को यह पता लगा तो उन्होंने उस एक कमल के फूल की खोज शुरू कर दी। जब भगवान श्री हरि ने इस पूरे ब्रम्हाण्ड में उस कमल के फूल को खोजा और वह नहीं मिला तब वह अपना कमल के समान अपने नेत्र निकालकर भगवान शिव को अर्पण कर दिए। यह देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट हुए और भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया।