Shiv tandav stotra saral bhasha me

 

नमस्कार दोस्तो, आज फिर हम एक नया लेख आपके लिए लेकर जिसमें हम सिखेंगे Shiv tandav stotra saral bhasha me, और shiv tandav stotram kaise yaad kare और shiv tandav stotram kaise sikhe शिव ताण्डव स्त्रोतम एक अत्यन्त दुर्लभ और लाभकारी महामंत्र हैं, जो पूर्णतः मूल रूप से संस्कृत भाषा में हैं। और आज हम ऐसे ही महत्वपूर्ण विषयों के बारे में आपको बहुत ही गहराई से जानकारी देंगे, इसलिए इस पूरे लेख को शुरू से आखिरी तक अवश्य पढ़े कही यह जानकारो आपसे छूट ना जाए।

 

Shiv tandav stotra saral bhasha me Sikhe

 

यह महामंत्र भगवान भोलेनाथ को अतिशीघ्र प्रसन्न करता हैं। इस महा मंत्र के बहुत ही चमत्कारिक लाभ हैं। कहा जाता हैं कि भगवान शिव देवो के देव महादेव भी कहे जाते हैं, भगवान शिव बहुत ही भोले हैं इसीलिए उन्हे भोलेनाथ भी कहा जाता हैं। भगवान शिव जब भक्त की अटूट देखते हैं तो भक्त पर प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त के जीवन की सभी बाधा, दुख, तकलीफ का नाश कर देते हैं और भक्त के जीवन खुशियों से भर देते हैं।

 

shiv tandav stotram

 

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

 

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी

विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके

किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

 

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर

स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि

क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

 

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा

कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे

मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

 

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर

प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।

भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक

श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

 

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा

निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं

महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

 

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल

द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।

धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

 

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्

कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः

कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

 

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा

वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

 

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी

रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

 

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस

द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

 

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्

गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

 

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

 

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं

पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं

विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

 

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं

यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां

लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

 

इति श्रीरावण कृत श्री शिव ताण्डव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्

 

 

Shiv tandav stotram

Shiv tandav stotram kaise sikhe bolna meaning in hindi

हमने कुछ सम्भव प्रयास कर इस श्री Shiv tandav stotram kaise sikhe bolna meaning in hindi में बहुत ही सरल और सहज भाषा-शैली में आपने सामने प्रस्तुत किया हैं। अब आप इस shiv tandav stotram kaise yaad kare को बहुत ही आसानी से पढ़ और याद कर सकते हैं।

 

तब आइए सीखते हैं shiv tandav stotram kaise ucharan kare का सही उच्चारण करना सिखते हैं। जैसा कि यहाँ यह स्त्रोत्र लिखा गया आप आराम से सभी शब्दो का उच्चारण कर पढ़ और याद कर सकते हैं।

 

जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावित स्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

अर्थ – उनके जटाओं से बहने वाली जल (गंगा) से उनका कंठ शीतल और पवित्र हैं, उनके गले में जो साँप (वासुकी) हैं, वह उनके गले में आभूषण के समान शोभायमान हो रहा हैं। उनके डमरू से डमड् डमड् डमड् की आवाज निकल रही है,भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।

 

जटा कटाह सम्भ्रम भ्रमन्नि लिम्प निर्झरी

विलोल वीचि वल्लरी विराजमान मूर्धनि ।

धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके

किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

अर्थ – मेरी भगवान शिव में गहरी रुचि है,जिनका जटा अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से शोभायमान है,जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं? जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।

 

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर

स्फुर द्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे ।

कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि

क्वच्चि द्दिगम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि ॥३॥

अर्थ – मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे,अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं,जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं,जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,

और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।

 

जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा

कदम्ब कुङ्कुमद्रव प्रलिप्त दिग्वधू मुखे ।

मदान्ध सिन्धुर स्फुरत्त्व गुत्तरीय मेदुरे

मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूत भर्तरि ॥४॥

अर्थ – मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।

 

सहस्र लोचनम् प्रभृत्य शेष लेख शेखर:

प्रसून धूलि धोरणी विधू सराङ्घ्रि पीठभूः ।

भुजङ्ग राज मालया निबद्ध जाट जूटक

श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः ॥५॥

अर्थ – भगवान शिव हमें संपन्नता दें,जिनका मुकुट चंद्रमा है,जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।

 

ललाट चत्व रज्वलद् धनञ्जय स्फु लिङ्गभा

निपीत पञ्च सायकं नमन्नि लिम्प नायकम् ।

सुधा मयू खले खया विराजमान शेखरं

महाकपालि सम्पदे शिरो जटाल मस्तु नः ॥६॥

अर्थ – शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।

 

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वलद्

धनञ्जया हुती कृत प्रचण्ड पञ्च सायके ।

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक

प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

अर्थ – मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है,

वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।

 

नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत्

कुहू निशी थिनीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।

निलिम्प निर्झरी धरस्त नोतु कृत्ति सिन्धुरः

कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

अर्थ – भगवान शिव हमें संपन्नता दें,वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,जिनकी शोभा चंद्रमा है,जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।

 

प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालि मप्रभा

वलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छि दांध कच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे ॥९॥

अर्थ – मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 

अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी

रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम् ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे ॥१०॥

अर्थ – मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैंशुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 

जयत्व दभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस

द्विनिर्गमत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् ।

धिमिद् धिमिद् धिमिद् ध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल

ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

अर्थ – शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड

तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।

 

दृषद् विचित्र तल्पयोर् भुजङ्ग मौक्ति कस्रजोर्

गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुहृद् विपक्ष पक्षयोः ।

तृणा रविन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः

समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

अर्थ – मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,

घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,

सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?

 

कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्

विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थ मञ्जलिं वहन् ।

विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः

शिवेति मंत्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

अर्थ – मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?

 

इमं हि नित्य मेव मुक्त मुत्तमोत्तमं स्तवं

पठन् स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धि मेति संततम् ।

हरे गुरौ सुभक्ति माशु याति नान्यथा गतिं

विमोहनं हि देहिनां सुशङ् करस्य चिंतनम् ॥१६॥

अर्थ – इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।

 

पूजा वसान समये दश वक्त्र गीतं

यः शम्भु पूजन परं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां

लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

अर्थ – सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर जो रावण के गाए हुए इस शंभू-पूजन-संबंधी स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान् शंकर उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहने वाली संपत्ति देते हैं।

 

इति श्रीरावण कृत श्री शिव ताण्डव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्

 

अर्थ – इस प्रकार रावण कृत श्री शिव ताण्डव स्त्रोत्रम सम्पूर्ण हुआ।

 

shiv tandav stotram ke fayde

सावन के महीने में हम भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह की स्तुतियां करते हैं, शिवपुराण पढ़ते हैं और भी कई तरह के भजन कीर्तन करते हैं। जिससे भगवान शिव प्रसन्न हो और उनकी कृपा हमें प्राप्त हो सके। और इसी क्रम में आज हम आपको बताएंगे शिव तांडव स्तोत्र के बारे में एक ऐसी अद्भुत स्तुति के बारे में जिससे भगवान शिव तत्काल प्रसन्न होते हैं।अब यह जानते हैं कि किन परिस्थितियों में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना बहुत अच्छा होता है

 

सावन के महीने में जब भी बारिश हो बरसात का पानी सीधा जब वह बादलों से घिर रहा हो इसको इकट्ठा कर लीजिए कांच की बोतल में भरकर के अपने बैडरूम में रखिए, ऐसा करने से आपके वैवाहिक जीवन में आपके मैरिटल लाइफ में सुधार होगा।

 

अगर आपको स्वास्थ्य की ऐसी समस्या है जिसका समाधान नहीं निकल पा रहा है तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

 

अगर आप तंत्र-मंत्र से या शत्रु बाधा से परेशान है तो भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना अच्छा होता है।

 

अगर आर्थिक समस्या हो या रोजगार की समस्या हो तो भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

 

अगर जीवन में कोई विशेष उपलब्धि चाहते हैं कोई पद प्रतिष्ठा चाहते हैं तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

 

अगर आपकी किसी नवग्रह की महादशा अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा बहुत बुरी चल रही हो किसी ग्रह की कोई बुरी दशा चल रही हो तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना अच्छा होता है।

 

अगर आपको फंसा हुआ धन प्राप्त करना हो तो क्या करेंगे रोज सवेरे सूर्य देव को सादा जल अर्पित करेंगे। इस से सूर्य देव के सामने खड़े होकर या बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करिए हर मंगलवार को हनुमान जी को मीठा पान समर्पित करके प्रार्थना करिए आपका फंसा हुआ डूबा हुआ धन आपको प्राप्त होगा।

 

Shiv tandav stotram

shiv tandav stotram ke rachiyata koun hai?

 

आइए सबसे पहले जानते हैं कि शिव तांडव स्तोत्र आखिर है क्या, देखिए शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव के परम भक्त रावण के द्वारा रची गई एक विशेष शिव स्तुति है। यह स्तुति छंदात्मक स्तुति है छंदों में लिखी गई है और इसमें बहुत सारे अलंकार भी हैं, ऐसा कहा जाता है कि रावण जब कैलाश पर्वत को लेकर के चलने लगा कि, मैं तो कैलाश के साथ ही भगवान शिव को ले जाऊंगा। और ले जाकर लंका में स्थापित कर दूंगा।

 

यह देखकर भगवान शिव ने अंगूठे से कैलाश को दबा दिया इसका परिणाम यह हुआ कि कैलाश वहीं रह गया, और रावण का हाथ उस पर्वत के नीचे दब गया। तब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जो स्तुति गाई थी, उस स्तुति को शिव तांडव स्तोत्र कहते हैं। इस प्रकार shiv tandav stotram ke rachiyata रावण को कहा जाता हैं।

 

जहां पर रावण का हाथ दबा हुआ था उस स्थान को राक्षस ताल कहा जाता है, अब शिव तांडव में पहला अक्षर है शिव इसका मतलब होता है कल्याण, दूसरा अक्षर है तांडव, तो आखिर तांडव क्या होता है। तांडव शब्द बना है तंद्रिल से और इसका मतलब होता है उछलना एक तांडव नृत्य में ऊर्जा और शक्ति के साथ उछलना होता है ताकि दिमाग और मन शक्तिशाली बन सके। जितने भी दुनिया में एक्सरसाइज है वह शरीर के लिए अच्छे होते हैं लेकिन ब्रेन का एक्सरसाइज अगर कोई है तो वह तांडव नृत्य है।

 

बहुत ही शक्तिशाली बहुत ही भयंकर तांडव नृत्य केवल पुरुषों को करने की अनुमति होती है। महिलाओं को देखते हुए क्योंकि ऊर्जा का प्रयोग ज्यादा होगा तो उन्हें दिक्कत होगी, इसलिए महिलाओं को तांडव करना मना है।

 

shiv tandav stotra ka path kaise kare

 

आइए अब यह जानते हैं कि, आप शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करेंगे तो कैसे करेंगे ? आप सुबह ब्रम्ह मुहुर्त में उठकर के स्नान करे कर पढ़िए। या फिर प्रदोष काल में सूर्यास्त के आसपास के समय में इसका पाठ करिए। पहले भगवान शिव को प्रणाम और नमस्कार करके उन्हें धूप दीप और नैवेद्य यानि मिठाई अर्पित करिए।

 

इसके बाद ध्यान लगाकर इस स्तोत्र को जो कि छंदात्मक है। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ गाकर करें, अब गाने का मतलब यह नहीं हैं कि जैसे फिल्मों में गाया जाता हैं वैसा गाए। और अगर पूर्व दिशा की मुख करके इस Shiv tandav stotra का पाठ कर सके तो बहुत अच्छा होगा। पाठ करने के बाद भगवान शिव का ध्यान करें आंखें बंद करके और उसके बाद आपने भगवान शिव से प्रार्थना करें कि आपकी मनोकामना पूरी हो। अब इस महत्वपूर्ण shiv tandav stotra ka path kaise kare के बारे में सीख लिया हैं।

 

Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi

 

और यदि आपको फिर भी पढ़ने में किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है तो उस को हमने ध्यान में रख कर आपके लिए यह विडियो ढूढ़ कर लाए हैं। जिसे आप देखकर और भी आसानी से सीख सकते हैं।

 

 

यह भी अवश्य पढ़े – Shiv chalisa hindi arth in text

Shiv tandav stotra – FAQ

शिव ताण्डव स्त्रोत के रचयिता कौन हैं ?

शिव ताण्डव स्तोत्र के रचयिता रावण हैं।

शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ कैसे करें ?

शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ आप स्नानादि कर्म करके स्वच्छ एवं पवित्र भगवान शिव जी का स्मरण करते हुए कर कर सकते हैं।

शिव ताण्डव स्तोत्र पढ़ने के क्या क्या फायदे होते हैं?

शिव ताणडव स्त्रोत पढ़ने से जीवन के सभी कष्टो का अंत होना शुरू हो जाता हैं और एक नई सकारात्मक उर्जा का उदय होता हैं जो मन की हर अभिलाषा को पूर्ण करता हैं।

शिव ताण्डव मंत्र कौन सा हैं?

शिव ताण्डव मंत्र हैं, जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावित स्थले यह मंत्र पूरे 17 छंदो का हैं।

शिव ताण्डव स्त्रोत को कैसे याद किया जा सकता हैं सरल भाषा में?

जैसा कि हमने Shivchalisha.com के इस लेख में शिव ताण्डव स्तोत्र मंत्र को संधि विच्छेद करके बिल्कुल सरल भाषा में कर दिया जिसे कोई भी आसानी से पढ़ सकता हैं और याद भी कर सकता हैं।

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